December 19, 2022
सुनील दत्त: –ये लेख सन 1974 का है जब मायापुरी पत्रिका लोगो तक पहुंचना शुरू हुई थी. इस लेख को हमने मायापुरी अंक 1 से आपके लिए ज्यो का त्यों प्रस्तुत किया है. पढ़िए और जान लीजिये उस वक्त की ये खबर :-
वक्त कितनी जल्दी बदल जाता है और विषम परिस्थितियों में भी चट्टान जैसी दृढ़ता का परिचय देने वाले किस प्रकार अपने भाग्य का निर्माण करते हैं इसका सबसे ताजा उदाहरण सुनील दत्त है। कौन जानता था कि अंधेरे की गुफा में कैद सुनील दत्त फिर यकायक फिल्माकाश पर चमकने लगेगा। लगातार बाॅक्स ऑफिस पर पिटती हुई फिल्मों ने सुनील दत्त को कहीं का नहीं छोड़ा था। उसकी स्वयं की फिल्मों ‘रेशमा और शेरा’ तथा एक प्रयोगात्मक नायिकाहीन चित्र ‘यादें’ को बुरी तरह असफलता का मुंह देखना पड़ा।
‘रेशमा और शेरा’ एक कलात्मक एवं सुन्दर चित्र था जो दर्शकों को पसन्द नहीं आया और जिसकी असफलता ने दत्त साब को बुरी तरह झंझोड़ कर रख दिया। आर्थिक संकटों में घिर कर भी सुनील दत्त ने धीरज नहीं खोया। उनका आत्मविश्वास रह-रह कर उन्हें आगे और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहा और वे अनेकों रचनात्मक योजनाओं को क्रियान्वित करने में संलग्न हो गए। जो निर्माणधीन फिल्में थीं उनके प्रति पूर्ण सतर्कता बरतने लगे और प्रयास करने लगे कि उनके आसपास फैला हुआ अंधेरा कम हो जाए।
अंधेरा कम हुआ और सुलतान अहमद का ‘हीरो’ उन्हें रास आ गया। ‘हीरा’ फिल्म की सफलता ने फिल्मोद्योग में सुनील दत्त की वापसी की घोषणा कर दी। ‘प्राण जाये पर वचन न जाये’ और ‘गीता मेरा नाम’ फिल्मों की सफलता ने भी सुनील दत्त के आसपास फैला हुआ अंधेरा कम कर दिया। एक प्रकार से सुनील दत्त को अब फिल्मों में नई जिन्दगी मिली है। उसकी खोई हुई लोकप्रियता फिर से लौटी है। एक साथ मिली इस अपार सफलता से किसका दिमाग खराब नहीं होता। सुनील दत्त भी आखिर इन्सान है और मानवीय कमजोरियों का शिकार है।
पिछले दिनों एक निर्माता ने सुनील दत्त को अपनी कहानी सुनाने का आग्रह किया। सुनील ने कहा कि वह बेहद व्यस्त है। कहानी सुनने की उसके पास फुर्सत नहीं है। हां, वह एक काम कर सकता है कि निर्माता महोदय उसे अपनी कहानी मुंबई से कोलकाता के हवाई सफर में सुना दें। सुनील दत्त को एक अन्य निर्माता की शूटिंग के लिए कोलकाता जाता था इसलिए उसने यह प्रस्ताव रखा। सुनील दत्त को अपनी कहानी सुनाने का इच्छुक निर्माता इस बात के लिए सहमकत हो गया और उसने स्वयं अपने सहित कहानी लेखक और निर्देशक की सीटें भी उस सफर के लिए बुक करा दीं।
सुनील दत्त ने हवाई जहाज में कहानी सुनी और कहा कि उसे कहानी पसन्द नहीं आई। बेचारे निर्माता का इस यात्रा में क्या कुछ खर्च नहीं हुआ होगा आप अनुमान लगा सकते हैं। सुनील दत्त के इस व्यवहार की जितनी भी आलोचना की जाए कम है। इससे तो क्या ही अच्छा होता कि सुनील उस कहानी को अपने स्टोरी डिपार्टमेंट के विचारार्थ भेज देता। अपने अंधेरे समय में सुनील दत्त ने जिस धैर्य और दृढ़ता का परिचय दिया है, जैसे संतुलन उसने उस समय बनाए रखा वैसा ही उसे इन खुशी के दिनों में चाहिए। ज्यादा फल से लदा हुआ वृक्ष नीचे को ही झुकता है और सुनील दत्त से इसी की अपेक्षा है।
दत्त साहब स्वयं एक फिल्म बना रहे हैं- ‘नहले पर दहला’। इस फिल्म की नायिका सायराबानो है। दत्त साहब ने इस चित्र के निर्देशन का भार राजखोसला को सौंपा है यद्यपि वे चाहते तो स्वयं भी निर्देशन कर सकते थे। सुनील दत्त ने सायरा को ग्लैमरस और सैक्सी रोल में प्रस्तुत किया है। कहने वालों का कहना है कि ‘नहले पर दहला’ बाॅबी से भी एक कदम आगे है और उसकी हर वितरक अधिक से अधिक गारन्टी देने को उत्सुक है।
सुनील दत्त का स्वयं का जीवन अत्यन्त संघर्षपूर्ण रहा है। विभाजन से पहले झेलम नदी के तट पर स्थित एक छोटे से कस्बे झेलम में सुनील दत्त का जन्म हुआ। लगभग 6 वर्ष की आयु में ही वे मातृ स्नेह से वंचित हो गए। सुनील दत्त ने वे दिन भी गुजारे हैं जब कि वे मुंबई की फुटपाथ पर खाली पेट सोते थे और उनके पास पहनने के लिए पर्याप्त वस्त्र तक न थे।
आज भी जब सुनील दत्त को उन दिनों की याद आती है तो वे सिहर उठते हैं। उनका अतीत रह-रह कर उन्हें झकझोर देता है। अभी भी ‘हीरा’ फिल्म के प्रदर्शन से पूर्व जब वे निराशा के कुहासे में घिरे थे तो उन्होंने ‘मन जीते जग जीता’ जैसी फिल्में भी अपनाई और अपने बंगले में स्थित डबिंग थिएटर के किराए के काम चलाया।
आज सुनील दत्त की मांग फिर पहले जैसी है। एक से एक नई भूमिका में वे अवतरित हो रहे हैं। हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी हीरोइन दत्त जी के साथ अभिनय करने को लालायित है सायराबानो, प्रवीन बाॅबी, राधा सलूजा, मल्लिका साराभाई, प्रेमनारायण और जरीना वहाब उनकी आगामी फिल्मों की हीरोइनें हैं।
सुनील दत्त को चाहिए कि अब कम फिल्मों में व्यस्त रहकर प्रभावशाली अभिनय करें क्योंकि उन्हें पता है कि आदमी को हमेशा वक्त से डर कर रहना चाहिए। इस वक्त का मिजाज न जाने कब बदल जाये किसे पता है?
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