December 1, 2024
पुरानी यादें : कल का चुलबुला, फुर्तिला नायक ‘अजूबा’ फिल्म की शूटिंग, जिसमें वे जबरजंग सुलतान की भूमिका निभा रह होते हैं। जब स्टूडियो में आये अतिथियों को एक बड़ी मेज के सम्मुख भारी भरकम शरीर लिये बैठा मिलता है तो सहसा ही उन्हें आश्चर्य के समुद्र में गोता लगाना पड़ता है यकीन करना मुश्किल होता है कि क्या वक्त किसी हीरो को शारीरिक और मानसिक तौर पर इतना बदल सकता है। अपनी जवानी के दिनों में सुपरस्टार जिन्दगी जीने वाले हीरो की गति जैसे चीटी के समान मध्यम और गले में तमाम तरह की माला डाले हालत ऋषि मुनियों जैसी लगी थी।
मौका ताड़ कर हमने उनसे चन्द वार्तालाप की पेशकश उनके सम्मुख रखी तो छोटे भाई शशि कपूर उन्हें ‘बूढे़ शेर’ के नाम से खिजाते हुए उनके पास बैठ जाते हैं। इन दो भारी भरकम शरीर वालों के बीच में बैठे हम दो बूढ़े शेरों के बीच में फंसे हुए महसूस कर रहे थे वार्तालाप के दौरान।
शम्मी जी एक जमाना था जब इस देश का हर नौजवान अपने आपको शम्मी कपूर कहलवाना पसन्द करता था। वे आपके टाॅप के दिन थे मगर जैसे आजकल के हीरो अपनी बाॅड़ी को काफी मेहनत से मेन्टेन रखके अपने साथ की हीरोईनों के आऊट होने के बाद भी अपने आपको सालों उसी पोजीशन में जमाए रखते हैं। जैसे धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र, आपके ‘या…हूं’ के दिन बड़ी जल्दी खत्म हो गए। मेरे ख्याल से कुछ 1970-71 में आपकी दुकान बन्द हो गई थी। वजह ?
फिल्मों में उस जमाने में मेरा स्टाईल सबसे अलग था। उन लटकों झटकों में शारीरिक मेहनत बड़ी थी। जिस तरह कूद के और गुलाटियां खाके मैं अपनी टांगे तुड़ाता रहा था मैं ज्यादा दिनों तक नहीं कर सकता था। तब भी मैंने ज्यादा से ज्यादा दिन खींच लिये थे। मैंने अपनी दुकान तभी बन्द की थी जिस क्षण मुझे ये एहसास हुआ था कि ये काम अब मेरे बसका नहीं शम्मी जी आपके खानदान में राज कपूर से लेकर और शशि कपूर, रणधीर कपूर तक सभी प्रोड्यूसर डायरेक्टर बन गए है। क्या आपका इस तरह का कोई इरादा नहीं है? हमने जानना चाहा था ।’
‘नो। मैंने जिन्दगी में जो चाहा है सब किया है। ऐसा कभी मेरा कोई काम अड़ा नहीं रहा कि ब्रेक नहीं मिल रहा था स्त्रोत नहीं या कहीं आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा हो। मेरी जिन्दगी में कोई जगह खाली नहीं बची है मैं लंबे अर्से से इस फिल्म इण्डस्ट्री में रहा हूं और मैंने वो सब कुछ देखा है।’
वैसे मैंने ‘इरम्सला डयूस’ के ऊपर जीनत अमान को लेकर एक फिल्म बनाई थी। ‘मनोरंजन’ जो चल तो नहीं सकी शायद उसमें ज्यादा ‘साॅफिस्टीकेशन’ था। मैंने तो अपना काम इस फिल्म के मेकिंग में सही किया था और उसे एन्ज्वाय भी किया था। मैंने बच्चों के लिये भी एक फिल्म बनाई थी जिसका नाम था ‘बंडलबाज’।’
फिलहाल अब आप किन फिल्मों में काम कर रहे हो ?
‘अपने ऊपर इन दिनों मैं ज्यादा काम का बोझ नहीं ले रहा हूं। फिल्म ‘तू ही मेरी जिन्दगी’ का काम अक्तूबर के अन्त में या नवम्बर के शुरू में स्टार्ट हो जाएगा। फिल्म ‘हमशक्ल’ और ‘नमक’ की शूटिंग पूरी हो गई है। मैं अपने आपको काम में उलझाएं रखने के लिये चन्द फिल्में करता हूं। अपने चेहरे पर रंग लगाकर मैं खुद को इण्डस्ट्री का एक पार्ट महसूस करता हूं- शाम को थककर घर लौटने के बाद मुझे ये संतुष्टि मिलती है कि आज मैंने अपने ‘ड्रिंक’ के पैसे कमा लिये। मैं सिर्फ खो नहीं रहा हूं बल्कि पा भी रहा हूं रात को नौ बजे टी.वी. पर आने वाला सीरियल ‘गुल गुलशन गुलफाम’ जो कि कश्मीर की पृष्ठभूमि पर आधारित है आप कैसे करने को राजी हो गए क्योंकि हमें तो उसमें आपका कुछ रोल ऐसे खास दिखाई नहीं देता ?
‘मुझे इस सीरियल की स्क्रिप्ट पढ़कर संतुष्टि हुई थी इसलिये मैं ये रोल करने को राजी हो गया। जब इस रोल के बारे में प्रेम किशन मुझसे पूछने आया था तब मैंने ‘हां’ या ‘ना’ की जगह उससे यही कहा था कि अगर दो चार सीन इसमें मेरी उम्मीद के मुताबिक मुझे करने को मिलेंगे तो ही मैं इस बारे में सोच सकता हूं।’
शम्मी जी आप वर्षो पहले इस इण्डस्ट्री में एक नायक की हैसियत से काम करते थे और आज भी आप उसी इण्डस्ट्री में काम कर रहे हैं एक कैरेक्टर आर्टिस्ट की हैसियत से। अलावा उसके पास्ट और प्रेजेन्ट हालत में क्या फर्क है?
‘काम करने का अंदाज अलग है। हमने एक से ज्यादा शिफ्टों में कभी काम नहीं किया और ये लोग अपनी शिफ्टस काऊंट करना भूल जाते हैं। पता नहीं वे अपनी किसी फिल्म के साथ न्याय भी कर पाते हैं या नहीं, ना ही हमारे जमाने में चूहा दौड़ बिल्ली आई वाली रेस थी। ना कोई नम्बर वन था ना दो नम्बर पर कोई था। सबकी अपनी जगह थी अपना स्टेटस था। देव आनन्द का अपना स्टाईल था। राज कपूर की अपनी रोमांटिक इमेज थी। दिलीप कुमार जैसा दूसरा देवदास नहीं था और ‘या…हूं’ सिर्फ शम्मी कपूर ही कर सकता था। हम सबको अपने अपने सक्सेस का हिस्सा मिलता था और सबके आपकी संबंध भी अच्छे हुआ करते थे। मैं अपने भाग्य से खुश था।
उस वक्त आपको ढे़रों फैंनमेल आती होंगी? क्या आप बता सकते हैं कि उनमें ज्यादातर किसके और किस प्रकार के लेटर होते होंगे…?
जोर से ठहाका लगाते हैं….
‘इसमें छुपाने की क्या बात है? जाहिर है कि फैनमेल अधिकतर लड़कियों की या औरतों की हुआ करती थी। जो उस दुबले पतले शम्मी कपूर के झटकों पर फिदा हुआ करती थी। मुझ पर नहीं। कहकर और हंसते हैं- (हाथों से अपने मोटापे की तरफ इशारा करते हैं)
आपको अपने टाॅप पर होते हुए कितनी सैटिसफैक्शन मिला करता था?
‘बेहद ! जाॅब का भी और अपना लोकप्रियता से भी। मैं अपनी जिन्दगी का एक एक क्षण जीया हूं। वो भी अपने हिसाब से।
आज आप जिस प्रकार के रोल निभा रहे हो क्या उससे भी आप संतुष्ट हैं?
‘पहले तो मैं जो फिल्में कर रहा हूं उनकी गिनती बहुत कम है। अब उनमें से सब रोल तो संतुष्ट कर नहीं सकते मुझे भी और दर्शकों को भी फिर भी मुझे ‘प्रेमरोग’ ‘हुकूमत’ और ‘हमशक्ल’ में भी मेरा रोल दर्शकों को पसन्द आएगा।
शम्मी जी फिल्मों से संन्यास लेने की कसम सभी खाते हैं खाकर शादी के बाद हीरोईनों, वो भी ऐसी जो अपने समय अपने कैरियर का गोल्डन पीरिपड दे चुकी हो और कुछ अर्से बाद मां बनकर फिर से फिल्मों में लौटती है। ऐसी कौनसी चुंबकीय शक्ति उन्हें वापस खींच लाती है इस प्रोफेशन में?
‘ये एक क्रेजी बिजिनेस है। इसमें सिवाय पैसा ही नहीं है सेंस आफ अचिव्हमेंट भी है गलेमर है बस। इट इज लाईक ड्रग एडिक्शन !
-मेघना