November 15, 2024
Neeraj Pathak: 18 मई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’ पर स्टीम हो रही वेब सीरीज के निर्देषक नीरज पाठक किसी परिचय के मोहताज नही है. फिल्म ‘‘परदेस’’ के लेखन से कैरियर की शुरूआत करने वाले नीरज पाठक बाद में ‘‘राइट या रांग’’ से लेखक के साथ ही निर्देशक भी बन गए.वह ‘भईयाजी सुपरहिट’ सहित कई फिल्में निर्देषित कर चुके हैं.
प्रस्तुत है नीरज पाठक (Neeraj Pathak)से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश…
आपने फिल्म ‘‘परदेस’’ का लेखन कर बाॅलीवुड में कदम रखा.इस फिल्म ने सफलता के रिकार्ड बनाए। उसके बाद निर्देशन की तरफ मुड़ने की क्या वजह रही?
-मेरा सौभाग्य था कि मुझे सुभाष घई की फिल्म ‘‘परदेस’’ लिखने का अवसर मिला, जिसमें शाहरुख खान, अमरीष पूरी और महिमा चैधरी थीं। फिल्म भी सुपरहिट हो गयी। यह बहुत अच्छी शुरूआत थी। इसके बाद मैने ‘‘दीवानगी’’ लिखी। जिसका निर्देशन अनीस बज्मी ने किया था। यह क्राइम थ्रिलर थी। इसमें अजय देवगन का अहम किरदार था। यह फिल्म भी ब्लाॅकबस्टर थी। उसके बाद मैने अपनी फिल्म ‘राइट या रांग’’ लिखी। जिसका मैने खुद निर्देशन किया था। बीच में मैने मनोज बाजपेयी के लिए फिल्म ‘‘घात’’ भी लिखी। उसके बाद मैने ‘भईयाजी सुपर हिट’ की। अब ‘इंस्पेक्टर अविनाष’ किया है। मुझे लेखन के लिए फिल्में लगातार मिलती रही हैं। मगर मैं मुंबई फिल्म निर्देषक बनने के लिए ही आया था। पर मुझे पहले लेखक के तौर पर काम करने का अवसर मिला। लेकिन मैं निर्देशक बनने के लिए सही समय का इंतजार कर रहा था। देखिए, हमारी कहानी की पूरी जिम्मेदारी मेरी होती है कि उसे दर्शकों के सामने किस तरह पेश किया जाए। मेरी फिल्म ‘‘राइट या रांग’’ में सनी देओल और इरफान खान थे। यह क्रिटिकली अक्लेम्ड फिल्म थी। इसकी काफी तारीफ हुई थी। ‘अपने’ के लिए भी मुझे बहुत कम्पलीमेंट मिलते हैं। पर ओटीटी के लिए ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। जबकि अभी तो सिर्फ छह एपीसोड ही स्ट्रीम हुए हैं। इसके लिए मैं ‘जियो स्टूडियो’ की ज्योति देशपांडे और जियो सिनेमा का शुक्रगुजार हॅूं।
आपने सुभाष घई के लिए ‘परदेस’ और अपने निर्देशन के लिए ‘राइट या रॉंग’ लिखी। दोनो फिल्मों में काफी अंतर था। आप
‘परदेस’ की सफलता के बाद उसी तरह की फिल्म भी तो अपने निर्देशन में बनाने के लिए लिख सकते थे?
-मैने हमेषा अलग अलग तरह की फिल्में लिखी हैं। एक ही ढर्रे की फिल्म लिखने में मेरा यकीन नही है। मैने ‘परदेस’ एक पारिवारिक कहानी लिखी थी। जबकि ‘राइट या रांग’ एक क्राइम थ्रिलर थी। तो मुझे क्राइम लिखने का बड़ा शौक था। मैने ढेर सारी क्राइम फिल्में देखी हैं। इस तरह का साहित्य पढ़ने का शौक भी रखता हॅूं। ‘राइट या रंग’ में रोमांच भी था। कुछ सामाजिक मुद्दे भी थे। इसमें इस बात पर रोषनी डाली गयी थी कि जीवन में सही और गलत क्या होता है? तो हमने बताया था कि यह तो उस इंसान की अपनी परिस्थिति पर निर्भर करता है। मसलन आज एक अपराधी बंदूक शौक से नही उठाता है। उसके पास जब कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता, या वह ऐसे हालात में फंस जाता है कि उसे बंदूक उठानी पड़ती है। पुलिस वाला भी बंदूक उठाता है। अब मेरी सीरीज ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ भी पुलिस वाले की कहानी है, जो इनकाउंटर स्पेषलिस्ट है। अविनाश के जीवन में कुछ ऐसा घटता है कि वह प्रण ले लेता है कि मैं स्वयं पुलिस अफसर बनूँगा और अपराध का खात्मा करुंगा।
इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की जानकारी आपको कैसे मिली कि आपने उन पर यह सीरीज बनाने का फैसला किया?
-एक दिन लखनउ में अचानक इंस्पेक्टर अविनाश से मेरी मुलाकात हो गयी। 15 मिनट की मीटिंग में मैं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ। मैने पाया कि वह बहुत ही ज्यादा डाउन टू अर्थ है पर असली जीवन के हीरो हैं। नब्बे के दशक में अविनाश मिश्रा एक सुपर काॅप रहे हैं। सारे दिग्गज अपराधियों के इनकाउंटर में इनका नाम है। उन्होने अपने कारनामों को कभी भी प्रचारित नही किया। उन्होने मुझसे कहा- ‘‘किसी को मेरे बारे में जानने की क्या जरुरत है। हम तो सिर्फ अपना काम रहे हैं। ’’ उनके बात करने की अदा ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मैने उनसे कहा कि मुझे आपकी जिंदगी पर फिल्म या सीरीज बनानी है। उनसे मैने इसके अधिकार हासिल किए। फिर उनके बेटे वरूण की कंपनी के साथ मिलकर हमारी कंपनी ‘गोल्ड माउंटेन पिक्चर्स’ ने मिलकर इस सीरीज का निर्माण किया। इसमें अविनाश मिश्रा का बहुत बड़ा योगदान है। इसमें अविनाश मिश्रा की निजी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्सों के साथ ही प्रोफेशनल जिंदगी के किस्से भी हैं।
किसी के निजी जीवन के किस्सों को उसके मुंह से सुनना जितना अच्छा लगता है, उतना उसे सिनेमा के परदे पर उकेरना कठिन होता है। तो आपने यह सब कैसे किया?
-इस कार्य में डेढ़ से दो वर्ष का समय लगा। मेरे सह पटकथा लेखक समीर अरोड़ा हैं। संवाद लेखक संजय मासूम हैं। राहुल शुक्ला और उत्कर्ष खुराना मेरे एसोसिएट लेखक हैं। तो हमने इन लोगों की एक टीम बनाकर इस पर काम किया। अविनाश जी ने जो किस्से सुनाए,वह तो कई घंटों की रिकार्डिंग है। फिर हमने इस पर षोधकार्य भी किया। उसके बाद हमने उनके जीवन का एक ताना बाना बुना। यह कैसे इंसान है। उनके आस पास के लोग कौन हैं। उनकी टीम में कौन कौन हैं। कुछ खलनायक उनकी जिंदगी में सतत नहीं थे। अलग अलग केस में अलग अलग खलनायक थे। पर हमने सिनेमाई स्वतंत्रता लेते हुए कुछ परमानेंट विलेन के किरदार गढ़े। तो इसमें तीस प्रतिषत कल्पना है और सत्तर प्रतिषत हकीकत है। सिनेमा के दृष्टिकोण से कहानी रचने के लिए ऐसा करना जरुरी होता है। इसमें मनोरंजन भी है। इसमें बाप बेटे का टकराव भी है। पिता नही चाहते कि वह पुलिस अफसर बने, पर कैसे एक दिन उनके पिता उन्हे सैलूट करते हैं कि तू बहुत अच्छा पुलिस अफसर है।
जिस इंसान की बायोपिक होती है, उस इंसान की अपनी पसंद होती है। जबकि लेखक व निर्देशक की अपनी सोच होती है। इस
टकराव को कैसे दूर किया?
-इस मामले में मैं बहुत खुषकिस्मत रहा। अविनाष जी का मुझे पर पूरा विष्वास रहा। वह मुझे अपना छोटा भाई मान चुके है। मैने पूरी सीरीज लिखकर षूटिंग कर ली। उसके बाद मैने अविनाष जी को दिखाया, तो वह खुष हो गए। इस षो को ‘जी सिनेमा’ पर देखने के बाद उनकी पत्नी बहुत खुष हुईं। उन्होने कहा- ‘‘भईया आपने तो भौकाल कर दिया। हर जगह अविनाष के ही चर्चे हैं।’
इस सीरीज को देख रहे दर्शक के दिमाग में क्या आ रहा है?
-दर्षक के दिमाग में एक ऐसा किरदार आएगा, जिसमें कमियां भी हैं। कोई भी इंसान संपूर्ण नही होता.पर वह असली हीरो है। जो समाज की सफाई करने के लिए अपराध को खत्म करने का बीड़ा उठाता है। उसके सामने कई चुनौतियां है। अपराधियो के संग राजनीतिक हस्तियां जुड़ी हुई हैं।
‘‘इंस्पेक्टर अविनाश’’ की शीर्ष भूमिका में रणदीप हुडा ही क्यों?
-रणदीप हमेशा हमारी पहली पसंद थे। लेकिन, जब मैं पहली बार कहानी सुनाने के लिए रणदीप से मिलने गया, तो उन्होंने मुझसे कहा कि पुलिस की भूमिका के अलावा मुझे कुछ दूसरी कहानी सुनाइए। मैं एक पुलिस वाले की भूमिका नहीं करना चाहता। मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि अभी तो मैं एक पुलिस अधिकारी की भूमिका लेकर आया हूं। फिर उन्होने पटकथा सुनी तो उन्हें पसंद आई। उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और मुझे लगता है कि यह उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ भूमिकाओं में से एक है।
क्या इंस्पेक्टर अविनाश का सीजन 2 भी आएगा?
-देखिए, ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ का पार्ट 2 भी बनेगा। फिलहाल पहले सीजन में हमारे पास 16 एपिसोड हैं, जिनमें से आठ हम अभी रिलीज कर रहे हैं और आठ तीन महीने बाद रिलीज होंगे। सीजन 2 की स्क्रिप्टिंग इस साल के अंत तक शुरू हो जाएगी।
इसके बाद की क्या योजनाएं हैं?
-मैं तीन चार प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हॅूं। हम दीपक मुकुट के साथ मिलकर भी हम तीन फिल्में बना रहे हैं। हम अनोखी कहानियां देने वाले हैं। महामारी के बाद पूरे विश्व के सिनेमा से परिचित हो रहा दर्शक अब बहुत चतुर हो गए हैं और वह विभिन्न प्रकार की शैलियों की तलाश कर रहे हैं। इसके अलावा हमारा लक्ष्य देश की नई प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करने के लिए भी है।
-शान्तिस्वरुप त्रिपाठी
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